सहिष्णुता पर एक कविता:-
जहाँ दर्द भरे नगमे हँसकर गाये और सुनाये जाते हैं
वहाँ लोग हमें सहिष्णुता की परिभाषा समझाते हैं
यहाँ बिच्छुओं को भी आग से बचाए जाते हैं
और जहरीले साँपों को जी-भरकर दूध पिलाए जाते हैं
कुचल न जाएँ पौधे पेड़ों से
संभल-संभल कर कदम बढ़ाते हैं
जहाँ देखें चिटियों का झुण्ड
वहाँ आटा-शक्कर का भोग लगाते हैं
छत पर मंडराते परिंदों का
शकोरे से प्यास बुझाते हैं
फसलों में एक हिस्सा पशुओं का
खलिहानों में ही निकाले जाते हैं
वहीं बेगैरत कुछ लोग हमें
सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते हैं
जहाँ दर्द भरे नगमे हँसकर गाये और सुनाये जाते हैं
वहाँ लोग हमें सहिष्णुता की परिभाषा समझाते हैं
यहाँ बिच्छुओं को भी आग से बचाए जाते हैं
और जहरीले साँपों को जी-भरकर दूध पिलाए जाते हैं
कुचल न जाएँ पौधे पेड़ों से
संभल-संभल कर कदम बढ़ाते हैं
जहाँ देखें चिटियों का झुण्ड
वहाँ आटा-शक्कर का भोग लगाते हैं
छत पर मंडराते परिंदों का
शकोरे से प्यास बुझाते हैं
फसलों में एक हिस्सा पशुओं का
खलिहानों में ही निकाले जाते हैं
वहीं बेगैरत कुछ लोग हमें
सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते हैं

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