Friday, 20 November 2015

9वीं और10वीं शताब्दी के दौरान और सोलहवीं शताब्दी के मध्य तक, राजपूतों ने भारत के विविध क्षेत्रों में महत्वपूर्ण राजनीतिक महत्ता प्राप्त की थी. ये राजपूत राज्य अपनी  वीरता की वजह से भारत में मुस्लिम वर्चस्व के  ख़िलाफ मुख्य बाधा के रूप में विद्यमान थे. यदि हम रामायण और महाभारत के समय के ऐतिहासिक तथ्यों पर विश्वास करें तो राजपूतों ने पूर्व काल से ही हमेशा अपने वर्चस्व की स्थिति को बनाये रखा था.
राजपूतों द्वारा भारत में लड़ी गयी कुछ महत्वपूर्ण लड़ाईयां
राजपूतों द्वारा लड़ी गयी पहली लड़ाई में तराईन का युद्ध (1191ईस्वी) लड़ा गया था. इस युद्ध में, चौहान वंश के पृथ्वीराज चौहान ने मुश्लिम शासक मुहम्मद गोरी को उस समय के भारत में मौजूद थानेश्वर के पास पराजित कर दिया था. लेकिन पुनः अपनी शक्ति को मजबूत करते हुए मुहम्मद गोरी ने 1192 ईस्वी  में चौहान शासक पृथ्वी राज चौहान को पराजित कर दिया था. इसी तरह चन्दावर के युद्ध में भी मुहम्मद गोरी ने (1194 ईस्वी) में राजपूत शासक जयचंद को बुरी तरह से पराजित कर दिया था. चन्दावर (1194 ईस्वी) की लड़ाई में, जयचंद्र, मोहम्मद गोरी से हार गया था. खानवा का युद्ध (1527 ईस्वी) में मेवाड़ के राणासांगा और फ़रगना के बाबर के बीच हुआ था. यह ऐसा युद्ध था जिसमें राणासांगा, बाबर के द्वारा पूरी तरह से पराजित हो गया था और बुरी तरह से घायल भी हुआ था.
चंदेरी के युद्ध में (1528 ईस्वी) बाबर की विजय हुई थी. इस युद्ध में चंदेरी के मेदिनी राय और बाबर ने भाग लिया था.
राजा हेम चन्द्र विक्रमादित्य नें (1556 ईस्वी) के पानीपत युद्ध में अकबर के खिलाफ अभियान किया था लेकिन पराजित हुआ था.
मुगल राजपूत युद्ध की शुरुआत (1558 ईस्वी) में शुरू हुई थी. अकबर जैसे ही सत्ता में आया सर्वप्रथम उसने मेवाड़ को जीतने का प्रयास किया. उस समय मेवाड़ का शासक राणा उदय सिंह थे. अकबर की यह दिली इच्छा थी की उत्तर-भारत में उसका एकछत्र साम्राज्य कायम हो और चित्तौड़ का किला उसके अधीन हो. 1567 ईस्वी में मुगल सम्राट अकबर नें चित्तौड़ का अभियान किया और किले के बाहर के क्षेत्र पर कब्जा करना शुरू कर दिया. उस समय राणा उदय सिंह के शाही सलाहकारों ने उदय सिंह को चित्तौड़ छोड़ने की सलाह दी और उसे मेवाड़ की पहाड़ियों की तरफ जाने को कहा. युद्ध प्रारंभ हो गया और युद्ध की पूरी जिम्मेदारी उदय सिंह के दो जिम्म्मेदार सेनापरी जयमल और फत्ता नें अपने ऊपर ले ली. इन दो सेनापतियों नें करीब 8000 सिपाहियों के साथ पूरी बहादुरी के साथ मुग़ल सेना का सामना किया. इन दो सेनापतियों की वजह से ही मुग़ल सेना को मेवाड़ को जीतना काफी कठिन रहा और उन्हें नाको चने चबाना पड़ा.
हल्दीघाटी का युद्ध (1576 ईस्वी) राजपूत इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटना के रूप में माना जाता है. यह युद्ध अकबर और महाराणा प्रताप प्रथम के बीच लड़ा गया था. यह युद्ध करीब चार घंटे तक लड़ा गया था. यह राजपूत काल की सबसे बड़ी विडम्बना है कि मेवाड़ को छोड़कर करीब सभी राजपूत शासक मुग़लों के समक्ष आत्मसमर्पण कर चुके थे. महाराणा प्रताप प्रथम एक शक्तिशाली योद्धा था. मेवाड के महाराणा उदय सिंह के ज्येष्ठ पुत्र महाराणा प्रताप में आत्मसम्मान व स्वाभिमान कूट कूट कर भरा हुआ था अतः उन्होने भी मुगलों की आधीनता स्वीकार ना करते हुए उनसे लोहा लेने की ठानी. उनके प्रिय घोड़े का नाम चेतक था जिसके वह सवारी किया करते थे. ऐसा माना जाता हैं की इसी चेतक नें महाराणा प्रताप प्रथम के जीवन को किले की दीवारों को फांदकर बचाया था. किले को फांदने के क्रम में ही उस स्वामिभक्त घोड़े चेतक का प्राणोत्सर्ग हो गया, उस स्थान पर आज एक स्मारक बना हुआ है जो कि चेतक स्मारक के नाम से जाना जाता है.

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